यमुना के तट पर, छेड़ो मत नटखट |
छोड़ दो कलाई मोहे भरना है गगरी ||
लेने दो न चैन मोहे करो न बेचैन श्याम |
विनती करूँ मैं तोरी छोड़ मोरी तगड़ी ||
सुनो नन्दलाल मोहे करोगे बेहाल तब |
कैसे जाऊँगी बताओ अपनी मैं नगरी ||
चल हट झट पट मोहे तंग मत कर |
जाना मोहे घर मत रोक मोरी डगरी ||
सुनो नन्दलाल मोहे न करो बेहाल अब |
कैसे जाऊँगी मैं बोलो भीगी – भीगी नगरी ||… वाह , बहुत सुंदर लिखा है किरण जी ,राधा -कृष का प्रसंग मन मोह लेता है , जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
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धन्यवाद वंदना जी
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